अरे प्रधानमंत्री जी ! आपने पहचाना नहीं ?...मैं कानपुर हूँ...


प्रधानमंत्री जी ! आइये, मैं आपको सरकारी प्रोटोकाल से अलग पूरे सम्मान और स्नेह के साथ कुछ पलों के लिए अपने सच्चे कानपुर से अवगत कराता  हूँ...
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सदियों पूर्व सचेंडी के राजा हिन्दू सिंह द्वारा चार गाँवो ( पटकापुर , कुरसवाँ , जुही तथा सीमामऊ ) को मिला कर बसाये गये 'कान्हपुर' से कानपुर में तब्दील होने तक मैंने बहुत कुछ देखा है... मैंने शस्त्र भी देखे हैं और शास्त्र भी... मैंने अपने दामन में नील और अफीम की खेती होते हुये भी देखा है... तो अपनी मिलों के कपड़ो से देश विदेश को सजते भी देखा... मैंने फिरंगियों को लगान के लिए जुल्म ढाते देखा... तो जरुरतमन्दो के लिए अपना सब कुछ लुटाने वाले रईस भी...
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प्रधानमंत्री जी ! मैं वही कानपुर हूँ जिसकी जयघोष से अंग्रेजो के पैर उखड़ जाते थे... और मैं वही कानपुर हूँ जिसने हर क्रांतिकारी को अपने गले लगाया और जिसने कभी आजादी की मशाल को मंद नही होने दिया... मैं वही कानपुर हूँ जिसकी एकता के लिए एक “ विद्यार्थी “ खुद की आहुति दे देता है... मैं वही कानपुर हूँ जो पूरे भारत को झंडा उंचा देता है... मैं वही कानपुर हूँ जिसके हर तरफ धर्म के प्रतिमान गर्व से सर उठाएं खड़े हैं... अनगिनत शौर्य कहानियाँ इसके जर्रे-जर्रे में बिखरी हैं... पर ये तो बातें इतिहास की हैं... और इतिहास तो मुर्दों का होता हैं... लेकिन मैं कानपुर तो एक जीवित नगरी हूँ, तो क्यों कर रहा हूँ अतीत की बाते... शायद इसलिए की वर्तमान में मेरे पास कहने के लिए शून्य के अतरिक्त कुछ नहीं है... मीलों के शहर से माल्स के शहर में बदलता मैं भी तो धीमें-धीमें मलवे या मुर्दे में ही तब्दील हो रहा हूँ... चालीस लाख से अधिक आबादी को खुद में समाया मैं कानपुर टूटी सडकों के जख्मों , बंद क्रासिंग ( अनवरगंज मंधना मार्ग ) के नासूर और अनुयोजित विकास के दर्द की वजह से ठहर सा गया हूँ... अक्सर मैं सोच कर शर्माता हूँ कि कभी देश भर के लोगो को रोजी-रोजगार देने वाला मेरे शहर का कोई लड़का लुधियाना की किसी कपड़ा फैक्ट्री में मजदूरी करता दिखता है... आज मेरे शहर में रोजगार की किल्लत ये है कि हर तीसरे घर का एक आदमी किसी और देश/प्रदेश/शहर में आजीविका तलाश रहा है... होजरी उद्योग खत्म हो चुका है और शहर के चर्म उद्योग के मुंह में तुलसी दल पड़ चुका है... एक समय अपने दामन के बीच से बहती नहर, खूबसूरत बगीचों , नहरों और नदियों के सौन्दर्य से इतराता मैं कानपुर जिसके लिए कभी शायर मजीद खां ने कहा था “ बाग़ ए जन्नत से कम नही है फ़िज़ा - ए कानपुर... मुर्दा जी जाये जो वह खाये हवा - ए कानपुर “
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लेकिन किसने जाना था कि मेरी हवाएं इतनी जहरीली हो जायेंगी कि मैं इस संसार का सबसे प्रदूषित शहर बन जाऊँगा... बहुत बेबस हो जाता हूँ मैं, जब विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं के वादों के बीच डेंगू जैसी समान्य बीमारी को सैकड़ों जिंदगियां लीलते देखता हूँ... मैं रोज दुआएं माँगता हूँ कि मुझे एम्स दो या न दो लेकिन सरकारी अस्पतालों में बेड , डाक्टर और दवाइयां दे दो ताकि कोई बेबस बेमौत न मरे... प्रिय प्रधानमन्त्री जी ! आपको दिखाने के लिए मेरे पास बहुत कुछ है पर शर्मिंदा हूँ कि मैं कैसे मैट्रो के मुहाने पर खड़ा होकर आप प्रधानसेवक को बारह साल से अधबना सी.ओ.डी. पुल दिखाऊं... खुद के साथ स्मार्ट शहर के नाम पर हो रहे मजाक के बीच मैं कैसे जवाब दूँ आपको... क्यों यहाँ आकर "जे.एन.यू.आर.एम." योजना  से लेकर "प्रधानमन्त्री कौशल विकास" केंद्र तक की विकास योजनायें विनाश योजनाओं में तब्दील हो जाती हैं ?
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प्रधानमन्त्री जी ! जब नाला बन चुकी गंगा में धोखे के पानी पर आपके स्टीमर चलने की खबर सुनता हूँ तो उस पानी में कुछ बूंदे अपने अश्रुजल की मिला देता हूँ ताकि आपकी विकास यात्रा अनवरत जारी रहे... बाकी जिस गंगा के लिए आप आये हैं न उसका हाल बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं... आपके आगमन और स्वागत के हजारों होर्डिंग्स के बीच कैसे सूचित करूं मैं आपको, कि जिस विधार्थी के “प्रताप “ को हमें धरोहर में सहेजना था वो हर दिन मलवे में बदल रहा है... और उसे एक बोर्ड तक नहीं हासिल... कैसे कहूँ कि कलाकारों की शरणस्थली कानपुर कला की कब्रगाह बन चुका है... और मेरे पास अपने कलाकारों की कला के प्रदर्शन के लिए एक उचित हाल तक नहीं है... आपको आमंत्रित तो कर लिया लेकिन क्या दिखाऊँ आपको समझ नहीं आ रहा आप देश के सबसे बड़े हुक्मरान हैं... भला आपको आवारा जानवरों से चिड़ियाघर बन गये शहर को क्या दिखाना... आपको ढह रहे जाजमऊ पुल या वजूद खोते एतिहासिक बिठूर ले चलकर भी सिर्फ शर्मिंदगी के अतिरिक्त मुझे क्या हासिल होगा...
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प्रधानमंत्री जी मैं आप से कुछ नहीं चाहता... सिवाय चंद जवाबों के... कि जब मैंने गली के पार्षद से लेकर मुल्क के राष्टपति तक आपका चुना... आपके हर वादे और इरादे के साथ चला... तब मेरी इस बर्बादी की वजह क्या है ?... क्यों नकारा जाता हूँ मैं  ?... बार बार... हरबार ?... और क्या कभी मेरा खोया गौरव लौट सकेगा ?... कौन है इसका जिम्मेदार ?... क्या कभी कानपुर के लिए भी कोई भागीरध बन कर आ सकेगा ..?
आपका -
मैं कानपुर..!!